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भारत के लिए बढ़िया सच्चाई          _cc781905 -5cde-3194-bb3b-136bad5cf58d_ AMAZING TRUTH FIR INDIEN

 

AWR HINDI / हिन्दी / हिंदी

 

बाइबिल भविष्यवाणी की अंतिम घटनाओं

 

 

हिंदी (Hindi)

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ख्रीष्ट की और कदम

मनुष्य के प्रति परमेश्वर का प्रेम

ईश्वर के पुनीत प्रेम की साक्षी प्रकृति और समस्त श्रुतियाँ दे रही है. हमारी प्राणमयी प्राणमयी, प्रतिभापूर्ण बुद्धि और उल्लासमय आनन्द के उद्र्म और और स्त्रोत स्वर्ग के हमरे परम है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. प्रकृति की मनोमुग्धकारी सुषमा परषऍृ WEignयह विचारतोह विचार Irann kee do keen Eico I0. net वस्तुएँ किस के गुण गुण गुण गुण गुण गुण गुण कल्याण कल्याण कल्याण कल्याण कल्याण कल्याण मानव है है है है है कल्याण प्राणीमात्र प्राणीमात्र प्राणीमात्र कल्याण कल्याण कल्याण कल्याण कल्याण कल्याण है कल्याण कल्याण मानव मानव मानव मानव है कल्याण कल्याण मानव कल्याण कल्याण मानव कल्याण कल्याण है कल्याण कल्याण है मानव कल्याण कल्याण है कल्याण कल्याण है कल्याण है कल्याण है है है कल्याण है है है कल्याण कल्याण है है है कल्याण. सूरज की अमृतमयी किरणे और मत्त रागिणी से भरी वर्षा वर्षा

 

जिस से पृथिवी उर्जस्विज एवं पुलकित हो उठती है, कविता-पंक्तियों की तरह पर्वत-मालायें, जीवन के स्पन्दन से भरी समुद्र की तरंये, और वैभवसुहाग में प्रफुल्लित श्यामला भूमि, इन सब से सृष्टि का अनंत प्रेम फूट रहा है। स्तोत्र कर्ता कहता है:- SC 5.1

सभों की आँखें तेरी ओर लगी रहती है
और तू उन को समय पर आहार देता है॥
तू अपनी मुठ्ठी खोल कर
सब प्राणीयों को आहार से तृप्त करता ॹे SC 5.2

 

भजन संहिता १४५:१५,१६। SC 5.3

ईश्वर ने मनुष्य को पूर्णतः पवित्र और आनन्दमय बनाया और जब यह पृथिवी सृष्टि के हाथों से बनकर आई तो न तो इस में विनाश का चिन्ह था और न श्राप की काली छाया ही इस पर पड़ी थी। इश्वर इश्वर के नियम चक्र - प्रेम के नियम चक्र - चक्र के अतिक्रम से संताप और मृत्यु घुसी घुसी घुसी घुसी घुसी घुसी घुसी घुसी घुसी घुसी घुसी घुसी. Vun फिरभी पाप फल स्वरुप जो कष्ट और और संताप आ जाते है है, उनके बिच भी इश्वर इश्वर है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. पवित्र शास्त्र में लिखा है की मनुष्य के हित के लिए ही इश्वर ने पृथिवी को दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया. जीवन में जो कांटें और भटकटैया की

 

भादियाँ उग आई– ये पीडाएं और यातनाये जो मानव-जीवन को संग्राम , परिश्रम और चिंताओ से पूगी बना रही है— मनुष्य के कल्याण के लिए ही आई, क्योंकी ये मनुष्य को उद्धोधन और जाग्रति के संदेश दे अनुशासित करती है ताकि मनुष्य ईश्वरीय विधान की कामोन्नति के लिए सतत क्रियाशील और पाप द्वारा लाये गए विनाश और अध: पतन से उठे उठे उठे उठे. संसार का पतन हुआ है किन्तु सर्विशत सर्विशत: आह और यातनाओ से नहीं नहीं. प्रकृति में ही आशा और सुख के संदेश।नि भटकटैयो पर फुल उगे है और काँटों के भुरमूट कलित कलियों में लद है है. SC 5.4

"ईश्वर प्रेम है।" यह सूक्ति प्रत्येक कलि पर पर, प्रत्येक उगन्ती घास की पर लिखी है है. रंगबीरंगी चिड़िया जो अपने कलित कलरव से वातावरण को मुखारेत कर देती है, अपरूप रंगों की चित्रकारी से सजी कलियाँ और कमनीय कुसुम जिन से साग समीरण सुश्मित सुहास से मत हो जाता है, और वन- प्रांत की ये विशाल वृत्तवलिया जिन पर जीवनमयी हरीतीमा सदैव विराज De रही है, - ये ईश्वर के कोमल ह्रदय और उसके पिता तुल्य तुल्य वात्सल्य है है है है है है है है है. ये उसकी उस इच्छा प्रतिक है जिससे से वोह अपने प्राणियों को आनन्द आनन्द विभोर करना है है है है है है है है है. SC 7.1

ईश्वर के प्रत्येक वचन से उसके गुण द। क। उसने स्वयं अपने प्रेम और दया की अन।।।अन।।। जग मूसा ने प्रार्थना की की “मुक्ते अपना गौरव दिखा” तो ईश्वर ने कहा, “में तेरे सम्मुख हो कर चलते हुए तुम्हे अपने साड़ी भलाई दिखाऊंगा”। निर्गमन ३ ३ : १८,१३। यही तोह उसका गौरव है। ईश्वर ने मूसा के सामने प्रगट हो कर कहा, “यहोवा, यहोवा ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी कोप करने में धीरजवन्त्त और अति करुनामय और सत्य, हजारो पिडीयों लो निरन्तर करुना करनेहरा, श्र धर्मं और अपराध और पाप का क्षमा करनेहारा है।” निर्गमन ३४: ६ ,७। ईश्वर तो “विलम्ब से कोप करनेहारा करुनानिधान” है, “क्योंकी वोह करुना में प्रीती रखता है।” मिका ७: १८॥ SC 7.2

 

ईश्वरने हमारे को को से इस पृथिवी पर और उस स्वर्ग में असंख्य असंख्य चिन्हों द्वारा बाँध है है है है है है. Eप्रकृति के पदार्थ द्वारा और पृथिवी के गंभीरतम और कोमलतम संबंधो संबंधो के द्वारा ईश्वर ने अपने आप आप है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. फिर भी इन वस्तुओं ईश्वर के अनंत प्रेम का एक वुदांश ही प्रगट है है. उसके प्रेम की साक्षी अनंत थी। तोभीतोभी अमंगल भावना अँधा अँधा वह ईश्वर की और भवविस्फारित नेत्रों नेत्रों से देखने लगा तथा उसे उसे समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा समझा. Ed onसमजने मनुष्योंनेनेनेने कोको के बारे बारे कुछ कुछ कुछ कुछ ऐसा ऐसा समझाया की की लोग लोग बड़ा कड़ा शाशक कड़ा कड़ा लेनेवाला शाशक शाशक लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला शाशक शाशक शाशक शाशक शाशक शाशक शाशक शाशक शाशक शाशक शाशक शाशक शाशक शाशक शाशक शाशक शाशक लेनेवाला शाशक लेनेवाला लेनेवाला शाशक लेनेवाला समजने समजने समजने लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला समजने लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला समजने लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला लेनेवाला. उसने ईशार को रोप रखा उसमें ईश्वर का ऐसा जीव चित्रित हुआ जो लाल लाल किए किए किए किए. हमारे समस्त कामों निरिक्षण करतो हो ताकि हमारे भूले और गलतियाँ पकड़ ली जाये और उचित मिले मिले मिले मिले मिले मिले मिले मिले मिले मिले मिले मिले. ईश्वर के अमित प्रेम को व्यक्त एवं प्रत्यक्ष कर इस कलि छाया को दूर करने के लिए ही यीशु मसीहा मनुष्य के बिच अवतरित हुए॥ SC 7.3

ईश्वर पुत्र स्वर्ग से परमपिता को व्यक्त एवं प्रगट करने के अवतरित हुए हुए. "किसी ने परमेश्वर को कभी देखा एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में है है ने किया किया किया किया किया किया किया किया." योहन १:१८। “और कई पुत्र को नहीं जानता केवल पिता और कोई पिता को नहीं जानता केवल पुत्र और वोह जिसपर पुत्र उसे प्रगट करना चाहे।” मत्ती ११:२८। जब एक शिष्य ने प्रार्थना की कि मुझे पिता को दिखा तो येशु ने कहा, “मै इतने दिवस तुम्हारे साथ हूँ और क्या मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा उसने पिता को देखा। तू क्यों कर कहता है कि पिता को हमेाि दत? योहन १४:८, ६॥ SC 7.4

अपने पृथिवी के संदेश के बारे में येशु ने कहा,“प्रभुने” कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिए मेरा अभिषेक किया है और मुझे इस लिए भेजा है की बन्धओ को छुटकारे और अंधो को दृष्टी पाने का प्रचार करूँ और कुचले हुए को छुडाऊं। यही उनका संदेश था। वेवे और शुभ मंगल मंगल करते हुए शैतान के द्वारा शोषित शोषित लोगों को मुक्त एवं सुखी सुखी थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे. पुरे के पुरे विस्तृत गाँव थे जहाँ से किसी भी घर से किसी भी रोगी की कराहने की आवाज नहीं निकलती थी क्योंकि गाँव से हो कर येशु गुजर चुके थे और समस्त रोगों को दूर कर चुके थे। यीशु के ईश्वरीय साधक गुणों के प्रमाण के कार्य ही थे. प्रेम, करुणा और क्षमा यीशु के

 

जीवन के प्रत्येक काम में भरी हुई थी। उनका ह्रदय इतना था की मनुष्य के मासूम बच्चो को देखते ही वह सहानभूति से पिघल था था था था था था था था था था था था. उन्होंने मनुष्यों की अवश्यकताओं, आकांक्षाऒं और मुसीबतों को समझने के लिए ही अपना बाह्य और अन्तस्वमाद मनुष्यों के जैसा बना लिया था। इनके समक्ष जाने गरीब से गरीब को और नीच से नीच को जरा भी हिचक होती होती होती होती. Eod बच्चेउन्हेंउन्हेंउन्हें देखउन्हें औरखींचे और औरथे Da औरथेउनकेउनकेघुटनोंघुटनोंघुटनोंघुटनोंघुटनोंचढ़चढ़कर उनके उनके किरणे किरणे किरणे किरणे किरणे किरणे किरणे किरणे किरणे को जिस किरणे को किरणे से की की से से से की से की ज्योति की की की ज्योति ज्योति ज्योति ज्योति ज्योति की ज्योति ज्योति की थी थी थी थी की औरबच्चेबच्चेउन्हेंबच्चेउन्हेंउन्हेंदेखदेखथेथेtथेथेt औरथेउनकेउनकेघुटनोंघुटनोंघुटनोंपरपरचढ़ कर उनके उनके को किरणे प्रेम से से प्रेम से की ज्योति ज्योति की ज्योति की की की ज्योति ज्योति की की की ज्योति की थी की थी थी थी थी और औरउनकेघुटनोंघुटनोंघुटनोंपर गंभीर से से से से से की से से की ज्योति ज्योति प्रेम ज्योति की की ज्योति की की की ज्योति की ज्योति ज्योति की. SC 8.1

 

यीशु Dat सत्य के किसी किसी अंश अंश अंश अंश किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी किसी को छुपाया छुपाया छुपाया छुपाया छुपाया छुपाया छुपाया कहा रूप रूप उन्होंने प्रिय रूप रूप उन्होंने उन्होंने रूप प्रिय उन्होंने प्रिय उन्होंने उन्होंने प्रिय प्रिय उन्होंने प्रिय प्रिय प्रिय उन्होंने प्रिय ही प्रिय ही प्रिय ही ही ही ही ही ही नहीं नहीं नेनेनेनेनेकेकेकेकोको. किसीको किसीकिसी किसीशब्द किसी को छुपाया छुपाया छुपाया छुपाया छुपाया छुपाया छुपाया रूप कहा कहा उन्होंने रूप उन्होंने रूप उन्होंने उन्होंने रूप प्रिय उन्होंने रूप प्रिय प्रिय उन्होंने प्रिय उन्होंने उन्होंने प्रिय प्रिय. Eod ignou वे से करते तो तो तो चतुराई चतुराई के साथ साथ, बड़े विचारमग्न हो कर और साथ साथ साथ साथ ममता ममता साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ साथ. वे कभी रूखे न हुए, कभी भी फिजूल और कड़े शब्द न बोले, और भावूक ह्रदय से कभी अनावश्यक शब्द न बोले जो उसे बिंध दे। मानुषी दुर्बलताओ की कटु और तीव्र आलोचना उन्होंने कभी की की. उन्होंने सत्य तो कहा किंतु वह खरा होने पर भी प्रेम में रहता रहता. उन्होंने पाखंड अंधविश्वास, अंधविश्वास अन्याय के विरुद्ध बातें की की, किंतु किंतु फटकार के उन शब्दों में में थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे.

 

जब धरुशलेम क शहर ने उन्हें, उनके मार्ग को, सत्य को और जीवन को प्राप्त करने से इन्कार कर दिया तो वे उस शहर के नाम पर जिसे वे प्यार करते थे रोने लगे। वहाँ के लोगों ने उनको अस्वीकृत किया, अपने उद्धारकर्ता को अगीकार करना अस्वीकार किया, फिर भी उन्होंने उस लोगों पर सकरुना और प्रेम भरी ममता की दृष्टी डाली। उनका जीवन ही था था, आत्म-त्याग का आदर्श था और परमार्थ के लिए था था. उनकी आँखों में प्रत्येक प्राण अमूल्मूल् उनके व्यक्तित्व में सदा ईश्वरीय प्रताप रहता फिर भी उस परमपिता परमेश्वर के विशाल परिवार का प्रत्येक सदस्य के सामने वे पूरी ममता और सहृदयता के साथ झुके रहते थे। उन्होंने सभी मनुष्यो को पतित देखा; और उनका उद्धार करना उनका एक मात्र े।। े।। SC 8.2

यीशु मसीह के के के से उनके चरित्र का ऎसा ही उज्वल रूप प्रतिभासित है है. और ऎसा ही चरित्र ईश्वर का भी है। उस परमपिता के करुणा ह्रदय से ही ममतामयी करुणा की धारा मनुष्यों के बच्चों में प्रवाहित होती है और वही खीष्ट में अबाध गति से प्रवाहमान थी। प्रेम से ओत प्रोत, कोमल ह्रदय उद्धारकर्ता यीशु ही थे "जो शारीर में प्रगट हुए." १ तीमुथियुस ३:१६॥ SC 9.1

केवल हम लोगों के उद्धार के लिए ही यीशु ने जन्म ग्रहण किया, क्लेश भोगे तथा मृत्यु सहा। वे "दुःखी पुरुष" हुए ताकि हम लोग अनंत आनन्द के उपभोग के योग्य सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके. ईश्वर ने विभूति और सत्य से आलोकित अपने प्रिय पुत्र को राशि राशि सौंदर्य के लोक से वैसे लोक में भेजना अंगीकार किया जो पाप से विक्षत और विनष्ट और मृत्यु की कालिमा तथा श्राप की धुलिम छाया से कलुषित हो

 

गया था। उन्होंने उन्हें अपने प्रेममय अन्तर प्रदेश को और दूतों से महिमान्वित दशा को, तथा लांछना, कुत्य अवहेलना , घृणा और मृत्यु तक सहने के लिए उन्हें इस लोक में आने दिया। "जिस ताड़ना से हमारे लिए शांति उस पर पड़ी और उसके कोड़े खाने खाने से हम चंगे चंगे सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके सके यशावाह ५३:५। उन्हेंउसउसउस झाङझाङ फंसे देखिए देखिए, गतसमने त्रस्त देखिये देखिये, कृसपर अटके देखिए देखिए. परमपिता के पुनीत पुत्र ने सारे पापों का भार अपने कंधो पर ले लिया की ईश्वर और मनुष्य के बीच पाप कैसी गहरी खाई खोद सकता है। इसी Den कारण होठों वह करुणा चीत्कार फूट फूट निकली, "हे ईश्वर ईश्वर, हे दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया." मतौ २७:४६। पाप के बोझिल भार से, उसके भीषण गुरुत्व के भाव-वश, आत्मा के, ईश्वर से विमुख हो जाने के कारण ही ईश्वर के प्रिय पुत्र का ह्रदय टक टुंक हो गया॥ SC 9.2

 

किंतु ये महान बलिदान इस लिए नहीं हुआ की परमपिता के ह्रदय में मनुष्य के लिए प्रेम उत्पन्न होवे, और इस लिए भी नहीं की ईश्वर रक्षा करने के लिए तत्पर हो जाए। नहीं, इस लिए कदापि नहीं हुआ। "परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा की उस ने अपना एकलौता पुत्र दिया दिया." योहन ३:१६। Eif anni सबसब पहले पहले प्यार करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते बलिदान बलिदान बलिदान बलिदान बलिदान बलिदान करते प्रयशित्त प्रयशित्त करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते करते नहीं करते. यीशु मसीह एक माध्यम जिससे जिससे कर इस अध् अध्: पतित संसार में ईश्वर ने ने अपार प्रेम उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला उछाला. "परमेश्वर मसीह में हो कर जगत के को अपने साथ मिला लेता था." २ कुरिन्थियों ४:१६। अपने प्रिय पुत्र के साथ साथ ईश्वर ने ेर ने Eगतसमने यात्रलाभों यात्रलाभों द्वारा और कल्वरी की मृत्यु लीला के द्वारा द्वारा करुणामय दयासागर प्रभु के ह्रदय हमारी दिया हमारी दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया दिया. SC 9.3

यीशुमसीहा ने कहा कहा पिता मुझसे प्रेम रखता है की में अपना अपना प्राण देता हु की लेऊँ लेऊँ लेऊँ लेऊँ लेऊँ लेऊँ लेऊँ लेऊँ लेऊँ लेऊँ योहन १०: १७। “मेरे पिता ने आप सभो को इतना प्यार किया है की उसने मुझे और और भी अधिक प्यार करना शुरू किया क्योंकी में आप के परित्राण के लिए अपना जीवन अर्पण किया। आप के समस्त ॠण और आप के सारे आप्रधो का भर में अपने जीवन को बलिदान चढ़ा कर ग्रहण कर्ता हूँ और तब में आप के एवज में रहूँगा, आप के लिए एक मात्र विश्वसनीय भरोसा बन जाऊँगा और इसलिए में अपने परम पिता का अनन्यतम प्रेमी हो उठूँगा । क्यों की मेरे बलिदान के द्वारा ईश्वर की निष्पक्ष न्याय प्रियता सिद्ध होगी और यीशु पर विश्वास करने वालों का वह पाप्मोचक भी होगा॥” SC 10.1

ईश्वर के पुत्र के किसकी शक्ति है जो हम लोगो की मुक्ति सम्पादित सके सके. क्यों की ईश्वर के विषय घोषणा केवल वोही कर सकता है जो उस की गोद में हो और जो ईश्वर के अनंत प्रेम की गहराई और विपुल विस्तार को जनता हो उसी के लिए उसकी अभी व्यक्ति हो सकती ही। अध्:पतित मानव के उद्धार के लिए जो अप्रतिम बलिदान यीशु ने किया उससे कम किसी भी अन्य कार्य के द्वारा ईश्वर का वह अनंत प्रेम व्यक्त नहीं हो सकता था जो उसके ह्रदय में विनष्ट मानव के प्रति भरा है॥ SC 10.2

Et ईश्वरईश्वर ने से ऐसा प्रेम की की उससे अपना एकलौता पुत्र दे दिया ". वह उन्हें न केवल इसलिए अर्पित किया की वे मनुष्यों के बिच रहे, उनके पाप का बोझ उठाये और इनके बलिदान के लिए मरे, किंतु इसलिए भी अर्पित किया की अध्:पतित मानव उन्हें ग्रहण करे। यीशु मसीहा को मनुष्य मात्र की और आवश्यकताओं का प्रतिक बनना था. ईश्वर के साथ एक रहने वाले यीशु ने मनुष्य के पुत्रो के साथ आपने को ऐसे कोमल संबंधो द्वारा बाँध रखा है की वे कमी खुलने या टूटने को नहीं। यीशु “उन्हें भाई कहने से

 

नहीं लजाते।” ईब्री २:११। वे हमारे बलिदान है, हमारे मध्यस्थ ८ह।, वे परम पिता के सिंहासन के निचे हमारे रूप में विचरते है और मनुष्य पुत्रो के साथ युगयुगान्तर तक एकाकार है क्यों की उन्होंने ने हमें मुक्त किया है। उन्हों ने ने यह सब सारा केवल इसलिए किया की विनाशकारी और धव्यसत्मक पाप के नरक से मनुष्य उद्धार पावे और वोह ईश्वर के पुनीत प्रेम की प्रतिछाया प्रदर्शित करे। और पवित्र आनन्द में स्वयं भी विभोे॰ ने SC 10.3

ईश्वर को हमरे भक्ति का महंगा मूल्य भुगतना पड़ा अर्थात हमारे स्वर्गीय पिता को आपने पुत्र तकको हमारे लिए मरने के हेतु अर्पण कर देना पड़ा। इससेहम कितने गरिमा गरिमा बरी कल्पना कर सकते है की यीशु मसीह के के द्वारा हम क्या सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे सकेंगे. जब प्रेरित योहन ने नाश होती मनुष्य जाती के प्रति ईश्वर के अनंत प्रेम की ऊंचाई, गहराई, विस्तार आदि देखा तोह वह विस्मय- विमुग्ध हो गया और उसका ह्रदय श्रद्धा और भक्ति से भर उठा। वह इतना भाव-गदद हुआ की उसके ईश्वर के प्रेम की अनन्ता और कोमलता कोमलता

 

के वर्णन के लिए शब्द ही न रहे। और वह केवल जगत को ही पुकार कर दर्शन नइ श२ कर 'Et annuléiert annuell पिता कैसा प्रेम किया है की की हम परमेश्वर के सन्तान कहलाए ". १ योहन ३:। इससेमनुष्य का मान बढ़ जाता है अपराधो के द्वारा मनुष्य के पुत्र पुत्र शैतान के शिकंजे में है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. किंतु यीशु -मसीहा के के-रूप पर भरोसा करके आदम के के पुत्र ईश्वर के पुत्र बन जा है है है है है है है है है है है है है है है है. यीशु ने मनुष्य रूप ग्रहण कर मनुष्यों को गौरवान्वित किया अब पतित मनुष्य ऐसे स्थान पर आ गए जहा से खीष्ट से सम्बन्ध जोड़ वे ऐसे गरिमा माय हो सकते है की “ईश्वर के पुत्र” के नाम से पुकारे जा सके॥ SC 11.1

यह प्रेम अद्वितीय है, अनूप है, स्वक।न्वर।न कितनी अमूल्य प्रतिद्न्या है। कठोर तपस्या के लिया यह उपयुक्त वि।ई ईश्वर का अप्रतिम प्रेम उस संसार न्योछावर है जिसने उसे प्यार नहीं किया. Eयह आत्मा आत्मा आत्मा समर्पण के हेतु बाध्य कर्ता है है और फिर ईश्वर की इच्छा इच्छा द्वारा है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है. उस क्रूस की किरणों के प्रकाश में हम जितना ही उस ईश्वर्य चरित्र का म्हनन करते है, उतना ही दया, करुणा, क्षमा, सच्चरित्रता और न्याय शीलता के उदाहरण पाते है और उतने ही असंख्य प्रमाण उस अनंत प्रेम का पाते है, एव उस दवा को पाते है ओ माता की ममत्व भरी वात्सल्य भावना से भी है है. _cc781905-5Cde-319 BB3B- 136BABD58d_ 136bad5cf58d_ Lieft

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