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भारत के लिए बढ़िया सच्चाई          _cc781905 -5cde-3194-bb3b-136bad5cf58d_ VERDAD INCREÍBLE PARA LA INDIA

 

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बाइबिल भविष्यवाणी की अंतिम घटनाओं

 

 

हिंदी (Hindi)

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ख्रीष्ट की और कदम

मनुष्य के प्रति परमेश्वर का प्रेम

ईश्वर के पुनीत प्रेम की साक्षी सारी प्रकृति और समस्त श्रुतियाँ दे रही है।।।।।।।।।। हमारी प्रagaणमयी चेतना, प्रतिभापूर्ण बुद्धि और उल्लासमय आनन्द के उद्र्म औecer प्रकृति की मनोमुग्धकारी सुषमा पर दृष्टि तो डिलल यह विचार तोह कीजिए की प्रकृति की सारी वस्तुएँ किस अद्बुत रीति से, न केवल मानव कल्याण के अपितु अपितु प्रagaणीमात्र के हित लिए अपने अपने अपने ूप-गुण परिवरن terminar सूरज की अमृतमयी किरणे और मत्त ¢ र से भरी रिमज़िम वर्षा

 

जिस से पृथिवी उû एवं एवं पुलकित हो उठती है, कविता-पंक्तियों की तरह पर्वत-म marca, जीवन के स्पन्दन से भरी समुद्र की तरंये, और क ग में में में सृष N 4. स्तोत्र कर्ता कहता है:- SC 5.1

सभों की आँखें तेरी ओर लगी रहती है
और तू उन को समय पर आहार देता है॥
तू अपनी मुठ्ठी खोल कर
सब प्राणीयों को आहार से तृप्त करता है॥ SC 5.2

 

भजन संहिता १४५:१५,१६। SC 5.3

ईश्वर ने मनुष्य को पूर्णतः पवित्र और आनन्दमय बनाया और जब पृथिवी पृथिवी सृष्टि के हाथों सेatar इश्वर के नियम चक्र-प्रेम के नियम-चक्र-के अतिक्रम से संताप और मृत्यु पृथिवी में घुसी।।।।।।।।।।।।। फिर भी पाप के फल स्वरुप जो कष्ट और संताप आ जाते है, उनके बिच भी इश्वर का अमित प्रगट होता है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। पवित्र शास demás में यह लिखा है की मनुष्य के हित के लिए ही इश्वर ने पृथिवी को शाप दिया। जीवन में जो कांटें और भटकटैया की

 

भादियाँ उग आई– ये पीडाएं और यातनाये जो मानव-जीवन को संग्राम , परिश्रम और चिंताओ से पूगी बना रही है— मनुष्य के कल्याण के लिए ही आई, क्योंकी ये मनुष्य को उद्धोधन और जाग्रति के संदेश दे अनुशासित करती है ताकि मनुष्य ईश्वरीय विधान की क sigue. संसार का पतन है है किन्तु यह सर्विशत: आह और यातनाओ से पूगी नहीं।।।।।।।।।। प्रकृति में ही आशा और सुख के संदेश निहित है। भटकटैयो पर फुल उगे हुए है और काँटों के भुरमूट कलित कलियों में लद गए है॥ SC 5.4

“ईश्वर प्रेम है।” यह सूक्ति प्रत्येक फूटती कलि पर, प् Est. रंगबीरंगी चिड़िया जो अपने कलित कलरव से वातावरण को मुखारेत कर देती है, अपरूप रंगों की चित्रकारी से सजी कलियाँ और कमनीय कुसुम जिन से साग समीरण सुश्मित सुहास से मत हो जाता है, और वन- प्रांत की ये विशाल वृत्तवलिया जिन पर जीवनमयी हरीतीमा सदैव विराज रही है,-ये सब ईश्वर के कोमल ह्عL. ये उसकी उस इच्छा के प्रतिक है जिससे से वोह अपने प्रagaणियों को आनन्द- विभोर करना चाहता है।।।।।।।।।।।।।। SC 7.1

ईश्वर के प्रत्येक वचन से उसके गुण देखे जा सकतै ॹ उसने स्वयं अपने प्रेम और दया की अनन्तता प्रगट है जग मूस mí निर्गमन ३ ३ : १८,१३। यही तोह उसका गौरव है। ईश्वर ने मूसा के सामने प्रगट हो कर कहा, “यहोवा, यहोवा ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी कोप करने में धीरजवन्त्त और अति करुनामय और सत्य, हजारो पिडीयों लो निरन्तर करुना करनेहरा, श्र धर्मं और अपराध और पाप का क्षमा करनेहारा है।” निर्गमन ३४: ६ ,७। ईश्वर तो “विलम्ब से कोप करनेहार marca करुनानिधान” है, “क्योंकी वोह करुना में प्रीती रखता है।” मिका ७: १८॥ SC 7.2

 

ईश्वर ने हमारे ह्रदय को अपने से इस पृथिवी पर और उस स्वर्ग में असंख्य चिन्हों द्वाenas बाँध रखा है।।।।।।।।। प्रकृति के पदार्थ के द्वाisiones और औ के गंभीरतम और कोमलतम के के द्वारuerzo ईश्वuestos फिर भी इन वस्तुओं से ईश्वर के अनंत प्रेम का एक वुदांश ही प्रगट होता है। उसके प्रेम की साक्षी अनंत थी। तोभी मनुष्य अमंगल भावना द्वाisiones शैतान ने मनुष्यों को ईश्वर के बारे कुछ ऐस mí उसने ईशार को जो रोप ivamente उसमें उसमें ईश्वर का ऐसा जीव चित्रित हुआ जो लाल लाल आँख।।।।।।।।।।।।।।।। हमारे समस्त कामों का निरिक्षण करतो हो ताकि हमारे भूले और गलतियाँ पकड़ ली जाये और उचित दण्ड मिले। ईश्वर के अमित प प utoando को व व uto एवं एवं एवं प Sप utoustrárत uto कár इस कलि कलि छendrtó को कोág कár क sigने के लिए ही यीशु यीशु मसीह मसीहella मनुष मनुष के के बिच अवत अवत हुए॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥. SC 7.3

ईश्वर- पुत्र स्वर्ग से परमपिता को व्यक्त एवं प्रगट करने के निमित्त अवतरित हुए।।।। "किसी ने परमेश्वर को कभी नहीं देखा एकलौता पुत्र जो पिता की गोद में है उसी ने प hubte योहन १:१८। "और कई पुत्र को नहीं जानता केवल पिता और कोई पिता को नहीं जानता केवल पुत्र और वोह जिसपecer मत्ती ११:२८। जब एक शिष्य ने प्रagaacho की की मुझे पिता को दिखा तो येशु ने कहा, “मै इतने दिवस तुम्हारे साथ हूँ और क्या मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा उसने पिता को देखा। ¿? योहन १४:८, ६॥ SC 7.4

अपने पृथिवी के संदेश के बारे में येशु ने कह mí यही उनका संदेश था। वे चारों और शुभ और मंगल मुखरित करते हुए शैत mí पुरे के पुरे विस्तृत गाँव थे जहाँ से किसी भी घर से किसी भी रोगी की कराहने की आवाज नहीं निकलती थी कutar यीशु के ईश्वरीय साधक गुणों के प्रमाण यीशु के कार्य ही थे। प्रेम, करुणा और क्षमा यीशु के

 

जीवन के प्रत्येक काम में भरी हुई थी। उनका ह्रदय इतना कोमल था की मनुष्य के मासूम बच्चो को देखते ही वह सहानभूति से पिघल जाता था। उन्होंने मनुष्यों की अवश्यकताओं, आकांक्षाऒं और मुसीबतों को समझने के लिए ही अपना बाह्य और अन्तस्वमाद मनुष Daveo इनके समक्ष ज siguez छोटे बच्चे उन्हें देख खींचे आते थे, और उनके घुटनों पर चढ़ कर उनके गंभीर मुख को जिस से प्रेम की ज्योति-किरणे फुट निकलती थी, निहoque बहुत पसंद क क थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे थे SC 8.1

 

यीशु ने सत्य के किसी अंश को, किसी शब्द तक को दबाया था छुपाया नहीं, किंतु सत्य उन्होंने प्रिय रूप में ही, प्रेम से बने शब्दों ही ही कह।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही objetivo जब भी वे लोगों से संभाषण करते तो बड़ी चतुराई के साथ, बड़े विचारमग्न हो कर और पूरी ममता और सावधानी के साथ वे कभी रूखे न हुए, कभी भी फिजूल और कड़े शब्द न बोले, और भावूक ह्रदय से कभी अनावश्यक शब्द न जो उसे बिंध दे।।।।।।।।।।। म siguez उन्होंने सत्य तो कह mí उन्होंने पाखंड, अंधविश्वास और अन्याय के विरुद्ध बातें की, किंतु उनके फटकार के उन शब्दों में छलक छलक रहे थे।।।।।।।

 

जब धरुशलेम क शहर ने उन्हें, उनके माisiones वहाँ के लोगों ने उनको अस्वीकृत किया, अपने उद्धाisiones ध siguese उनका जीवन ही उत्संग था, आत्म-त्याग का आदर्श था और परमार्थ के लिए बन mí उनकी आँखों में प्रत्येक प्राण अमूल्य था। उनके व्यक्तित्व में सद mí उन्होंने सभी मनुष्यो को पतित देखा; और उनका उद्धार करना उनका एक मात्र उद्देश था॥ SC 8.2

यीशु मसीह के जीवन के काisiones और ऎसा ही चरित्र ईश्वर का भी है। उस परमपिता के करुणा ह्रदय से ही ममतामयी करुणा की धारaga मनुष्यों के बच्चों में प्रवाहित होती है और वही खीष्ट में अबाध गति से प प Davagaहमान थी।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। थी elécitario eléctrica खीष demás प्रेम से ओत प्रोत, कोमल ह्रदय उद्धाisiones १ तीमुथियुस ३:१६॥ SC 9.1

केवल हम लोगों के उद्धार के लिए ही यीशु ने जन्म ग्रहण किया, क्लेश भोगे तथा मृत्यु सहा। वे “दुःखी पुरुष” हुए ताकि हम लोग अनंत आनन्द के उपभोग के योग्य बन सके। ईश्वर ने विभूति और सत्य से आलोकित अपने प्रिय पुत्र को राशि ¢ सौंदर्य के से वैसे लोक में भेजन भेजनguna अंगीकार किया जो जो प विक औ औ विनष विनष औ औ से से से श N धुलिम छ धुलिम धुलिम धुलिम श श शella धुलिम श शella धुलिम श शella धुलिम श शella.

 

गया था। उन्होंने उन्हें अपने प्रेममय अन्तर प्रदेश को और दूतों से महिम marca दश को, तथा लांछना, कुत्य अवहेलना, घृणा और मृत्यु तक सहने लिए लिए उन्हें इस लोक आने आने।।।।।।।।।।।।।।। सहने के लिए उन उन उन इस में आने आने।।।।।।।।।। मृत सहने लिए उन उन उन उन इस लोक आने आने।।।।।।।।।।।।।।।।।। लोक इस इस लोक आने आने।।।. "जिस ताड़ना से हमारे लिए शांति उपजेसो उस पर पड़ी और उसके कोड़े खाने से हम लोग चंगे सके।" यशावाह ५३:५। उन्हें उस झाङ झंख siguez परमपित marca के पुनीत पुत्र ने सारे पापों का भार अपने कंधो पर ले लिया की ईश्वर और मनुष्य के बीच पाप कैसी गहरी खoque खोद सकत है है है है है है है है है है है है है है है है है है है है सकत सकत सकत इसी कारण उनके होठों से वह करुणा चीत्कार फूट निकली, "हे मेरे ईश्वर, हे मेरे ईश्वर तूने मुझे क्यों छोड़ दिया।" मतौ २७:४६। पाप के बोझिल भार से, उसके भीषण गुरुत्व के भाव-वश, आत्मा के, ईश्वuestos से हो हो जाने के कारण ही ईश्वर के प्रिय पुत्र का ह्रदय टुंक हो॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥ eléc fue पुत electrónico क elécgen eléctrica eléctrica ह demás टक॥॥॥॥॥ SC 9.2

 

किंतु ये महान बलिदान इस लिए नहीं हुआ की परमपित♣ के ह्रदय में मनुष्य के लिए प्रेम उत्पन्न होवे, और इस लिए भी नहीं की की ईश्वर idamente नहीं, इस लिए कदापि नहीं हुआ। "परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखok की ने ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया।" योहन ३:१६। परमपिता हम सब को पहले से प्यार करते है, वे इस बलिदान (और प्रयशित्त) के कारण प्यार नहीं करते, वरणा प्य Davendr यीशु मसीह एक म sigue. "परमेश्वर मसीह में हो कर जगत के लोगों को अपने साथ मिला लेता था।" २ कुरिन्थियों ४:१६। अपने प्रिय पुत्र के साथ साथ ईश्वर ने भी क्लेश इ। गतसमने के यात्रलाभों के द्वाisiones और कल्वरी की मृत्यु लीला के द्वारaga करुणामय दयासागर प्रभु के ह्रदय ने हमारी मुक्ति का मूल्य चूका॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥ दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय दिय £. SC 9.3

यीशु मसीहा ने कहा "पिता इसलिए मुझसे प्रेम रखतok है में में अपना प्रagaण देता हु की उसे फिर लेऊँ" योहन १०: १७। "मेरे पिता ने आप सभो को इतना प्यार किया है की उसने मुझे और और भी अधिक प्यार करना शुरू किया क्योंकी में आप के प परितيífendo के के अपना जीवन अ razón किय किय gaste आप के समस्त ॠण और आप के सारे आप्रधो का भर में अपने जीवन को बलिदान चढ़ा कर ग्रहण कर्तendr. । क्यों की मेरे बलिदान के द्वाisiones ईश्वर की निष्पक्ष न्याय प्रियता सिद्ध होगी और यीशु पर विश्वास करने वालों का वह प Davप भी होग॥ " SC 10.1

ईश्वर के पुत्र के सिवा किसकी शक्ति है जो हम लोगो की मुक्ति सम्पादित कर सके। क्यों की ईश्वर के विषय घोषणा केवल वोही कर सकता है जो उस की गोद में हो और जो ईशutar के प प्रेम की गहराई और विपुल विस्त Davículo अध्: पतित मानव के उद्धार के लिए जो अप्रतिम बलिदान यीशु ने किया उससे किसी किसी भी अनutar SC 10.2

"ईश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखok की उससे अपना एकलौता पुत्र दे दिया”॥ वह उन्हें न केवल इसलिए अरorar यीशु मसीहा को मनुष्य म sigue. ईश्वर के साथ एक रहने वाले यीशु ने मनुष्य के पुत्रो के साथ आपने को ऐसे कोमल संबंधो द्वारा बाँध रखा है की वे कमी खुलने य टूटने को नहीं।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। यीशु “उन्हें भाई कहने से

 

नहीं लजाते।” ईब्री २:११। वे हमारे बलिदान है, हमारे मध्यस्थ है, हमारे भाै हाै; वे परम पिता के सिंहासन के निचे हमारे रूप में विचरते है और मनुष्य पुत hubte उन्हों ने ने यह सब सार marca और पवित्र आनन्द में स्वयं भी विभोर होने के योत्से SC 10.3

ईश्वर को हमरे भक्ति का महंगा मूल्य भुगतना पड़ा अर्थात हमारे स्वर्गीय पिता को पुत्ágamientos इससे हम कितने गौरव गरिमा से बरी कल्पना कर सकते है की यीशु मसीह के द्वारuerzo हम क्या पा सकेंगे।।।।।।।। Quis वह इतना भाव-गदद हुआ की उसके प sigue

 

के वर्णन के लिए शब्द ही न रहे। और वह केवल जगत को ही पुकार कर दर्शन कर लेने को सह "देखो, पिता ने हमसे कैसा प्रेम किया है की हम परमेश्वर के सन्तान कहलाए”। १ योहन ३:। इससे मनुष्य का म siguez किंतु यीशु -मसीहा के प्रagaयश्रीत -nada बलिदान पर भरोसा करके आदम के पुत्र ईश्वर के पुत्र बन जा सकते।।।।।।।।।।।।।।। यीशु ने मनुषutar. SC 11.1

यह प्रेम अद्वितीय है, अनूप है, स्वर्ग के रजा कऀ सॾ कितनी अमूल्य प्रतिद्न्या है। कठोर तपस्या के लिया यह उपयुक्त विषय है। ईश्वर का अप्रतिम प्रेम उस संसार पर न्योछावर है उसे उसे प्यार नहीं किया। यह विचार आत्मा को आत्मा समर्पण के हेतु बाध्य कर्ता है और फिर ईश्वर की इच्छा- शक्ति द्वाenas मन बंधी बना लिया जातात है।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।. उस क्रूस की किरणों के प्रकाश में हम जितना ही उस ईश्वर्य चरित्र का म्हनन करते है, उतना ही दया, करुणा, क्षमा, सच्चरित्रता और न्याय शीलता के उदाहरण पाते है और उतने ही असंख्य प्रमाण उस अनंत प्रेम का पाते है, एव उस दवा को पाते है ओ माता की ममत्व भरी वात्सल्य- भावना से भी अधिक॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥   और पढो     LEER MÁS

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