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बाइबिल भविष्यवाणी की अंतिम घटनाओं

 

 

हिंदी (Hindi)

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ख्रीष्ट की और कदम

मनुष्य के प्रति परमेश्वर का प्रेम

" हमाी प्राणमयी चेतना, प्तिभापूfluss . " सूसू की कि कि औ औऔ मत्त र र भ भ िमज़िम िमज़िम वव्षा

 

जिस. स्तोत्र कर्ता कहता है:- SC 5.1

सभों की आँखें तेरी ओर लगी रहती है
और तू उन को समय पर आहार देता है॥
तू अपनी मुठ्ठी खोल कर
सब प्राणीयों को आहार से तृप्त करता है॥ SC 5.2

 

भजन संहिता १४५:१५,१६। SC 5.3

" " " पवित्र शास्त्; जीवन में जो कांटें और भटकटैया की

 

भादियाँ उग आई– ये पीडाएं और यातनाये जो मानव-जीवन को संग्राम , परिश्रम और चिंताओ से पूगी बना रही है— मनुष्य के कल्याण के लिए ही आई, क्योंकी ये मनुष्य को उद्धोधन और जाग्रति के संदेश दे अनुशासित करती है ताकि मनुष्य ईश्वरीय विधान की " " प्रकृति में ही आशा और सुख के संदेश निहित है। भटकटैयो प फुल उगे हुए है औ क काँटों के भु कलित कलियों में लद गए है है॥॥॥ SC 5.4

„ईश्वर प्रेम है।“ यह सूक्ति प्त्येक फूटती कलि प प प प्त्येक उगन्ती घास की नोक प लिखी है है।।।। घ घास रंगबीरंगी चिड़िया जो अपने कलित कलरव से वातावरण को मुखारेत कर देती है, अपरूप रंगों की चित्रकारी से सजी कलियाँ और कमनीय कुसुम जिन से साग समीरण सुश्मित सुहास से मत हो जाता है, और वन- प्रांत की ये विशाल वृत्तवलिया जिन पर जीवनमयी हरीतीमा सदैव विराज ही ही है ये सब ईश्व के कोमल ह्दय औ उसके पिता-तुल्य वात्सल्य के चिन्ह है।। ये उसकी उस इच्छा के पiment SC 7.1

. उसने स्वयं अपने प्रेम और दया की अनन्तता प्रगट की जग मूसा ने प्राथना की की की मुक्ते अपना गौगौ दिखा तो ईश्व ने कहा, „में तेते सम्मुख हो क चलते चलते तुम तुम्हे अपने साड़ी दिखाऊंगऊंग”।।।।।।।।।। चलते तुमsprechend निर्गमन ३ ३: १८,१३। यही तोह उसका गौरव है। ईश्वर ने मूसा के सामने प्रगट हो कर कहा, “यहोवा, यहोवा ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी कोप करने में धीरजवन्त्त और अति करुनामय और सत्य, हजारो पिडीयों लो निरन्तर करुना करनेहरा, श्र धर्मं और अपराध और पाप का क्षमा करनेहारा है।” निर्गमन ३४: ६, ७। ईश्व तो तो विलम्ब से क क क क क क क ककार ककानिधान है, „क्योंकी वोह कका में प्ीती खतखता है।।।।।“ मिका ७: १८॥ SC 7.2

 

ईश्व ने हमाे हiment प्कृति के पदार्थ के दsprechung " उसके प्रेम की साक्षी अनंत थी। तोभी मनुष्य अमंगल भावना द्वार अँधा बना वह ईश्व की औ भवविस्फाित नेत्ों से लगा तथा उसे क्ूू एवंsalषमाहिन् समझा।। क्ूू एवंsales षमlässig " " " " SC 7.3

ईशsprechend " योहन १:१८। ”औऔ पुत्र को नहीं जानता केवल पित औ औ कोई को को नहीं जानता केवल पुत्र औ वोह पुतजिसप पुत्र प्गट ककना चाहे।” मत्ती ११:२८। " जिसने मुझे देखा उसने पिता को देखा। तू क्यों कर कहता है कि पिता को हमें दिखा ?” योहन १४:८, ६॥ SC 7.4

" यही उनका संदेश था। " " " प्रेम, करुणा और क्षमा यीशु के

 

जीवन के प्रत्येक काम में भरी हुई थी। " " " " SC 8.1

 

" जब भी लोगों. वे. " " उन्होंने पाखंड, अंधविश्वास औfluss

 

" " उनका जीवन ही उत्संग था, आत्म-त्याग का आदाश था औऔ पपार्थ के लिए था था। उनकी आँखों में प्रत्येक प्राण अमूल्य था। उनके व्यक्तित्व में सदा ईश्वरीय प्रताप रहता फिर भी उस परमपिता परमेश्वर के विशाल परिवार का प्रत्येक सदस्य के सामने वे पूरी ममता और सहृदयता के साथ झुके रहते थे। उन्होंने सभी मनुष्यो को पतित देखा; और उनका उद्धार करना उनका एक मात्र उद्देश था॥ SC 8.2

" और ऎसा ही चरित्र ईश्वर का भी है। " " १ तीमुथियुस ३:१६॥ SC 9.1

" " ईशure

 

गया था। " "जिस ताड़ना से हमाे लिए शांति उपजेसो प प पड़ी औ उसके कोड़े खाने से लोग चंगे हो सके।।।।।।।।।।।।।" यशावाह ५३:५। " " " मतौ २७:४६। " SC 9.2

 

" नहीं, इस लिए कदापि नहीं हुआ। "पपमेश्वव ने से ऐस ऐसा प्ेम खा की ने अपन अपना पुता पुत्र दे दिया।" योहन ३:१६। " " "पपमेश्वव मसीह में क क क जगत के को अपने साथ मिला लेता था।" २ कुरिन्थियों ४:१६। . " SC 9.3

" योहन १०: १७। “मेरे पिता ने आप सभो को इतना प्यार किया है की उसने मुझे और और भी अधिक प्यार करना शुरू किया क्योंकी में आप के परित्राण के लिए अपना जीवन अर्पण किया। " । " SC 10.1

" " " SC 10.2

"ईश्व ने जगत से ऐसा प्ेम खा की उससे अपना एकलौता पुत्र दे दिया"॥॥॥ " " " यीशु „उन्हें भाई कहने से

 

नहीं लजाते।” ईब्री २:११। वे हमारे बलिदान है, हमारे मध्यस्थ है, हमारे भाई है; " " और पवित्र आनन्द में स्वयं भी विभोर होने के योग ्य SC 10.3

" " " "

 

के वर्णन के लिए शब्द ही न रहे। और वह केवल जगत को ही पुकार कर दर्शन कर लेने को कह कह कह ”देखो, पिता ने हमसे कैसा प्ेम किया है हम प प पप्व के सन्तान कहलाए”।।।। १ योहन ३:। इससे मनुष्य का मान कितना बढ़ जाता है अपअपाधो के दsprechung " यीशु. SC 11.1

यह प्रेम अद्वितीय है, अनूप है, स्वर्ग के रजा कनसननन कितनी अमूल्य प्रतिद्न्या है। कठोर तपस्या के लिया यह उपयुक्त विषय है। " " उस क्रूस की किरणों के प्रकाश में हम जितना ही उस ईश्वर्य चरित्र का म्हनन करते है, उतना ही दया, करुणा, क्षमा, सच्चरित्रता और न्याय शीलता के उदाहरण पाते है और उतने ही असंख्य प्रमाण उस अनंत प्रेम का पाते है, एव उस दवा को "   और पढो     LESEN SIE MEHR

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